उम्मीद के दीये

 


सबसे पहले सभी पाठकों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। दीपावली प्रकाश का पर्व है। प्रकाश ज्ञान, समृद्धि और स्वच्छता का प्रतीक है। दीपावली के मौके पर लोग कई दिन पहले ही घर की साफ़-सफ़ाई में जुट जाते हैं, ताकि घर में देवी लक्ष्मी का आगमन हो सके।एक दूसरे के घर जाकर मिठाईयां देते हैं, गिफ़्ट देते हैं। आपस में मिलकर आतिशबाजी करते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इस त्यौहार के तौर तरीके बदल गये हैं। बाजार ने इस त्यौहार को ऐसे हथिया लिया है कि इसका स्वरूप तो क्या आत्मा ही बदल गयी है। लोगों से मिलना एक रस्म अदायगी मात्र रह गया है। आजकल लोग गिफ़्ट भी काम निकालने की मंशा से देने लगे हैं। लोग दिखावे में ज्यादा यकीन करने लगे हैं। एक अजीब सी होड़ नजर आती है। पिछली बार एक लाख खर्च किये, तो इस बार पांच लाख खर्च करने हैं। दीपावली पर चमक-दमक और दिखावे में बढ़ोत्तरी हो रही है। दीपों की जगह चायनीज लाइटों ने ले ली है। प्राकृतिक फूलों की जगह कृत्रिम फूलों और सजावटी सामनों ने ले ली है। मिट्टी के दीपक की जगह रंग-बिरंगी मोमबत्तियों ने ले ली है। दीपावली के मौके पर आजकल बाजार कृत्रिम सजावटी सामानों से भरे पड़े हैं। कहीं तलाशने से भी आपको प्राकृतिक सामान नहीं मिलेंगे। आप मिट्टी की मूर्तियां लेने जाएंगे, तो आपको प्लास्टर ऑफ़ पेरिस की मूर्तियां ही मिलेंगी। जो दीपावली का मकसद था, वो कहीं पीछे छूट गया है। साथ ही कई विकृतियां सामने आने लगी हैं। पिछले कुछ वर्षों से देखा गया है कि दीपावली के दौरान प्रयोग किये जाने वाले कृत्रिम सजावी सामानों और पटाखों के शोर और धुएं से आवोहवा इस कदर दूषित हो रही है कि इस पर देश की सर्वोच्च अदालत को दखल देना पड़ा। सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में अत्याधिक प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी है। इसे एक सुखद फैसले के तौर पर देखा जाएगा। वैसे भी दीपावली के साथ यह विडम्बना जुड़ती चली गयी कि हमने अपने घर दरवाजे को तो गंदगी से मुक्त कर लिया, लेकिन अपने आकाश को उससे कहीं ज्यादा गंदगी सौंप दी।स्वच्छता की कोई कोशिश एकांगी सफ़ल नहीं हो सकती, उसे सर्वपक्षीय बनाना होगा। दीपावली को समाज में सदभाव के त्यौहार के रूप में भी जाना जाता है। भारतीय संस्कृति का मूल आधार ही सद्भाव और संयम है। कुछ लोग अपने निजी स्वार्थ की खातिर जब तब इस सदभाव को खत्म करने की जुगत में लगे रहते हैं। हमने देखा है कि अतीत में जब भी यह सदभाव टूटा है, तो हमें भारी नुकसान उठाना पड़ा है। हमें अपने त्यौहारों के मूल उद्देश्य को फ़िर से पहचानना होगा। अपनी परम्पराओं में घुस आये प्रदूषकों को निकालना होगा। हमें आपस में मिलकर भाईचारे के साथ रहना होगा। दीपावली का असली उद्देश्य भी यही है कि अन्धकार से प्रकाश की ओर बढो। तो क्यों ना हम इस दीपावली प्रेम का एक दीप जलाएं और हमारे आसपास के माहौल और पर्यावरण को बेहतर बनाने का संकल्प लें।