राम बाण साबित होती कासनी


आयुष प्रदेश उत्तराखण्ड में विलुप्ति की कगार पर कासनी को आज हल्द्वानी वन अनुसंधान में संजोकर रखा जा रहा है, जिसका श्रेय वन क्षेत्राधिकारी मदन सिंह बिष्ट को जाता है। वन औषधि प्रेमी बिष्ट ने अब तक दर्जनों औषधियों को विलुप्ति की कगार से उभारा है, जिसमें कासनी सबसे प्रमुख है। कासनी एस्टेरेशिया कुल का पौधा है । इसका वानस्पतिक नाम "चिकोरियम इन्टाईबास' है। अंग्रेजी में इस पौधे को चिकोरी नाम से जाना जाता है। पालक की तरह दिखने वाला कासनी का पौधा आज देश में दर्जनों राज्यों में जरूरतमन्दों को उपयोग के लिए दिया जा चुका है। आयुर्वेद के अनुसार कासनी मनुष्य में किडनी संक्रमण, शुगर, ब्लैड प्रेशर, लीवर संक्रमण, और बवासीर रोगियों के लिए रामबाण औषिधि साबित हो रहा है। हजारों लोगों ने इसका उपयोग कर लाभ उठाया जा रहा है। देश के साथ साथ विदेशों में भी कासनी के मांग तेजी से बढ़ रही है। भारत में इस पौधे को उत्तर प्रदेश, हिमांचल, पंजाब, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, उड़ीसा और झारखण्ड राज्यों में इसकी मांग अधिक है। कासनी एक विलक्षण पौधा है, प्राकृतिक जलवायु के अनुसार उगता है, इस पर कीटनाशक प्रयोग करने से यह प्रजाति खत्म हो जाती है इसलिए इसे संजोकर रखा जाता है। यह पौधा उत्तराखंड, हिमांचल, पंजाब में अधिक पाया जाता है। इसकी दो अन्य प्रजातियां अधिक मात्रा में पाई जाती है जो खासकर चारे में बोई जाने वाली बरसिम में होती है, उन प्रजातियों पर सफेद एवं पीले रंग के फूल आते हैं, जबकि इस कासनी का फूल नीले रंग का होता है। कासनी का पौधा नीले रंग के फूल के सूखने के उपरांत बीज तैयार होने पर मर जाता है। इसी बीज को बोने पर नये पौधे तैयार हो जाते है। इन पौधों की लम्बाई चार फीट तक होती है। इसकी पत्तियां कटी हुई होती हैं। यह पौधा अधिक पानी बर्दाश्त नहीं करता, बालुई मिट्टी में यह अधिक उगता है। पौधा 4 माह से 9 माह तक जीवित रहते देखा गया है। कासनी के दो पत्तों को खाली पेट प्रातः चबाकर खाने के किडनी का संक्रमण, बड़ी हुई शुगर, ब्लड प्रेशर, लीवर का संक्रमण, बवासीर आदि रोगियों को लाभ होता है। नियमित रूप से पत्ते खाने से 3-4 माह में उपरोक्त रोगियो द्वारा अपने रोग की जाँच करने पर सकारात्मक परिणाम प्राप्त हुए है, शरीर पर इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता । कासनी की बढ़ती मांग को लेकर नर्सरी का विस्तार करने की बात कही जा रही है।कासनी को अभी सिर्फ जरूरमंदों के लिए ही मुहैया कराया जा रहा है, इसका कोई व्यापारीकरण नहीं किया गया। अगर आपको कासनी के पौधे प्राप्त करने हो तो आप हल्द्वानी में वन विभाग के अनुसन्धान केन्द्र से कासनी का पौधा ले सकते हैं, जिसको मदन सिंह बिष्ट द्वारा उत्तराखण्ड के साथ साथ अन्य राज्यों के लोगों को उपलब्ध कराया जा रहा है। कासनी का पौधा बिल्कुल फ्री उपलब्ध कराया जाता है। पौधा सुरक्षित ले जाने के लिए प्लास्टिक के छोटे छोटे कन्टेनर का चार्ज लिया जा रहा है जो की प्रति पौधा 10 रूपये है। अब तक कासनी के सेवन से लगभग 5000 लोगों को फायदा पंहुचा है। जिसमे जज, आईएएस, आईपीएस, राजनेता और सेना के उच्च अधिकारी भी है। हल्द्वानी अनुसंधान केन्द्र से नवम्बर 2014 से अब तक 25000 पौधों का निर्यात किया गया है। इसे घर के गमलों में भी लगाया जा सकता है, साथ ही इनके पत्तों को चबाकर खाने से ही रोग कट जाते हैं। वहीं रोग भगाने के साथ साथ वन विभाग के सामने कासनी को बचाने की बड़ी चुनौती है।